How Africans use brooms as a traditional lie detector
अफ्रीका महाद्वीप अपनी समृद्ध परंपराओं और दिलचस्प रीति-रिवाजों के लिए जाना जाता है. कभी-कभी इन रीति-रिवाजों में ऐसे तत्व शामिल होते हैं जो आधुनिक तकनीक से जुड़े लग सकते हैं. उन्हीं में से एक है "पारंपरिक सच बोलने की मशीन" का चलन, जिसके बारे में आपने शायद सुना होगा.
लेकिन ज़रा रुकिए!
वास्तविकता यह है कि अफ्रीका में कोई ऐसा यंत्र नहीं है जो वैज्ञानिक रूप से झूठ पकड़ सके. आधुनिक पॉलीग्राफ टेस्ट (जिसे लाइ डेक्टर टेस्ट भी कहते हैं) भी पूरी तरह से सटीक नहीं होते, तो पारंपरिक तरीकों की बात ही और है.
हालाँकि, कुछ अफ्रीकी समुदायों में ऐसे अनुष्ठान ज़रूर प्रचलित हैं जिनका इस्तेमाल सच उगलवाने के लिए किया जाता है. ये अनुष्ठान आमतौर पर किसी देवता या पूर्वजों के नाम पर दिलाई गई قسم (Kasam - कसम) पर आधारित होते हैं. माना जाता है कि अगर कोई व्यक्ति झूठ बोलता है तो उसे दैवीय दंड या दुर्भाग्य का सामना करना पड़ सकता है.
इन अनुष्ठानों के कुछ उदाहरण:
- विषाक्त पदार्थ से कसम: कुछ समुदायों में आरोपी को किसी विषाक्त पदार्थ को निगलने या स्पर्श करने की कसम दिलाई जाती है. यह माना जाता है कि अगर वो झूठ बोलता है तो ज़हर उसको नुकसान पहुंचाएगा.
- पवित्र वस्तुओं की قسم: महत्वपूर्ण वस्तुओं, जैसे मूर्तियों या धार्मिक ग्रंथों को छूकर सच बोलने की कसम खाई जा सकती है. झूठ बोलने पर इन वस्तुओं का अपमान माना जाता है.
- पारंपरिक उपचारक की भूमिका: कुछ मामलों में पारंपरिक उपचारक या धर्मगुरु किसी अनुष्ठान का आयोजन कर सकते हैं. इस अनुष्ठान में दैवीय शक्तियों को सच उजागर करने का आह्वान किया जाता है.
इन पारंपरिक तरीकों की प्रभावशीलता पर बहस:
यह ध्यान रखना ज़रूरी है कि ये तरीके अंधविश्वास पर आधारित होते हैं. इनकी सफलता काफ़ी हद तक उस व्यक्ति के विश्वास और समुदाय के दबाव पर निर्भर करती है. निर्दोष व्यक्ति पर भी झूठ का आरोप लगने और दबाव में आकर सच उगलने का खतरा रहता है.
निष्कर्ष:
अफ्रीका में भले ही कोई वैज्ञानिक झूठ पकड़ने वाली मशीन न हो, लेकिन पारंपरिक अनुष्ठानों के ज़रिए सदियों से सच उगलवाने की कोशिश की जाती रही है. हालाँकि, इन तरीकों की वैज्ञानिक सत्यता नहीं है और इन्हें कानूनी प्रमाण के रूप में स्वीकार नहीं किया जाता.